Sunday, July 3, 2011

जीवन साथी सबके पेड़
हाथ मिलाते सबसे पेड़
वर्षा आंधी तूफानों का
करें सामना डट कर पेड़
छ्aanee छ्appr महल अटारी
गा उठते बन ठन के पेड़
जीवन भर आनंद बाँटते
आदि अंत हैं जग ke
पेड़
[भोपाल 10.12.2007
]



जैसा जब मन होता
तैसा तब तन होता
मन में आग धधकती
मीरा -सा तन होता
मन वसंत बन खिलता
चन्दन वन तन होता
मन कोयल -सा कूके
तानसेन तन होता
मन मौसम धड़कन से
अनुबंधित तन होता
मन आनंद सना हो
परिभाषित तन होता
[भोपाल 15.09.2010]
जो कुछ कहना कहना सीखो
सच को सच ही कहना सीखो
पोथी पढ़ पढ़ समय गमाया
ढाई आखर पढ़ना सीखो
गिरकर पथ में हार न मानो
शूलों से कतराना कैसा
नित गुलाब -सा हंसना सीखो
पढ़ना आहिस्ता आहिस्ता
सोच समझकर लिखना सीखो
[भोपाल :05.09.2010]

डॉक्टर आनंद की गज़लें

पथ पर चलना सीखो
तनकर चलना सीखो
तूफानी तेवर से
हंस हंस लड़ना सीखो
गीत ग़ज़ल बारीकी
गुन गुन पढ़ना सीखो
बाह बाह महफ़िल की
सुनकर खिलना सीखो
[भोपाल : 05.09.2010]

Sunday, June 5, 2011

खिले हैं पलाश

खींच लिया बरबस
उस जादू ने -
चलते चलते ठिठक गया
चकित अचानक देखी जगमग
रह गया देखता ठगा ठगा -सा
चाहा कुछ बोलूँ पर बोल नहीं पाया ।
चाहा कर लूं बंद
उस रूप रंग को पलकों में
पर पलकें बंद नहीं हुईं !
चाहा लिख दूँ कविता,
पर लिखी नहीं गई !
लिखता भी क्या !
वह तो स्वयं साकार
इश्वर की कविता!
विद्याधर जोशी
इ-७/एल.आई.जी.३१८/अरेरा कालोनी भोपाल (म.प्र।)
डॉ.जैजैराम आनंद द्वारा टंकित ओर श्री यतीन्द्रनाथ राही के निर्देशानुसार

Friday, March 4, 2011

आकलन:श्री यतीन्द्रनाथ राही

राही गढ़ने में जुटे ,ऐसी अनगढ़ राह
'माटी माथे पर धरूँ ',हर राही की चाह
हर राही की चाह ,पूँछ लूं वो मधुशाला
पीकर जिसके घूँट , उलींचे अमर उजाला
भाषा भावों की चाल ,मोडते हो मनचाही
'महाप्राण .में प्राण ,फूकने वाले राही
डाक्टर जयजयराम आनंद ,
इ ७/७० अशोका सोसाइटी अरेरा कालोनी भोपाल

Sunday, January 30, 2011

दोहा मुक्तक

अनचाहे अब बरसती,बर्फ बर्फ बस बर्फ
मानो चादर धो रही ,सर्फ सर्फ बस सर्फ
अब भी यदि चेते नहीं ,किया प्रक्रतिसे बैर
होगा बेड़ा जगत का ,गर्क गर्क बस गर्क

कुहरे की चादर तनी,जमीं दूब पर बर्फ
भूल गया पारा अरे ,लिखना सुंदर हर्फ़
तापमान के मान का,भंग हुआ सम्मान
ठंड बाट करती नहीं ,सुने न कोई तर्क

शीत लहर ने कस लिए ,तीखे तीर कमान
बिना मौतके ले रही ,जन जीवन कीजान
मरुथल में होने लगी ,बेमौसम बरसात
भावी पीड़ी भाग का ,बड़ा कठिन अनुमान

महल अटारी हँस रहे ,छानी छप्पर मौन
फुटपाथों पर लाश को ,कफन उडाए कौन
सर सरिता जल स्रोत सब ,बने बर्फ पर्याय
थके पाँव हर पथिक के ,थामे बैठा भौन
[भोपाल:३०.०१.२०११]